Thursday, August 8, 2013

कविता

कविता ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखा और अचानक से कहा, "तुम्हे नहीं लगता की हम सब replacable हैं। उसके इतने सीधे सवालों को सुन कर मुझे हमेशा हैरानी होती थी, ऊपर से उसका मेरी तरफ देखना, मानो सारे सवालों के जवाब वोह मेरी आँखों में ढूँढने की कोशिश कर रही हो। समझ नहीं आता था, ऐसे में मेरे शब्दों का कोई मोल है भी की नहीं। खैर, मैंने अपने आप को सँभालते हुए पूछा , "कहना क्या चाहती हो?" कविता हलकी सी मुस्कान के साथ बोली, "मान लो कल को मैं ये शहर, ये लोग सब छोड़ कर चली जाऊं, तो क्या कुछ फरक पड़ेगा?" मुझे पता था की उसका इशारा उस कागज़ के पन्ने की तरफ था जो वो कई दिन से वो मुझे देना चाहती थी। आज मुझे किसी तरह उसे मनाना ही था।

मैंने अपनी दुनियादारी के लफ़्ज़ों में कहा, "depend करता है की तुम replacable की definition  क्या मानती हो?" वो झट से बोली "मेरे बिना क्या दुनिया का काम रुक जायेगा? क्या लोग मेरे बिना जीना बंद कर देंगे?  मैं बहुत बार कविता की इन बातों को सुन चुका था, बहुत बार समझाने की कोशिश भी करी की वो ऐसा सोचना छोड़ दे। न जाने क्या था जो उसके मन में फांस की तरह अटक रहा था। वोह कुछ गुनगुनाने लगी, "आऊँगी एक दिन, आज जाऊं "..... मैंने कविता की आँखों में देखा कर बोला, "तुम जो करना चाहती हो करो, तुम्हे जो साबित करना है करो, लेकिन होगा क्या? साबित करने के बाद तुम वापस आ पाओगी ? imagine करो की तुम हवा बन गई हो, तुम सबको महसूस कर सकती हो लेकिन क्या लोग तुम्हे महसूस कर पायेंगे? क्या तुम्हे देख पायेंगे? क्या तुमसे कह पायेंगे की वोह तुम्हे कितना चाहते हैं? ये तुम्हे decide करना है की तुम्हारे लिए important क्या है, ये की लोग तुमसे बात करने के बजाये तुम्हारे बारे में बात करें। तुम्हारे अपने तुम्हे सीने से लगाने के बजाये तुम्हरी तस्वीर को गले लगायें। तुम्हे लम्बी उम्र की दुआएं देने के बजाये आंसू बहाएं। तुम्हे कामियाबी का आशीर्वाद देने के बजाये तुम्हारी हार का शोक मनाएं। तुम्हारी शब्दों से हंसने के बजाये तुम्हारी खामोशियों में डूब जायें। अगर तुम आज यहाँ हो तो ये सब रहेगा, हंसी-ख़ुशी के सिलसिले चलते रहेंगे, अगर तुम चली गयी तो ये सब ख़तम हो जायेगा......and all that is irreplaceable!!

मुझे और कुछ कहने से रोकने के लिए कविता ने मेरे मुंह पे हाथ रख दिया। हम दोनों बस एक दूसरे को देखते रहे और न जाने कब कविता मेरी आँखों से ओझल हो गयी।  

अचानक से बारिश की बूंदों ने मुझे उठा दिया, मानों खिड़की  से झाँक-झाँक कर मुझे जगाने की कोशिश कर रही हों। मैंने हड़बड़ा  कर इधर-उधर नज़र घुमाई, कविता! कविता!.... क्या वोह मुझे छोड़ कर चली गयी?  एक कागज़ का पन्ना मेरी डेस्क पर हवा के झोंके  से फरफरा रहा था।